इक बारी वृन्दावन जाना पै गया

इक बारी वृन्दावन जाना पै गया,
मैं तां मुड़ आई दिल उत्थे रह गया....

मन्दिर च लोकी अग्गे पिच्छे फिरदे,
राधे राधे कहिन मुंह च फूल किरदे,
मैंनू मीठी वाणी दा स्वाद पै गया,
मैं तां मुड़ आई दिल उत्थे रह गया....

बांके बिहारी जी दे भीड़ बड़ी,
मैं तां थक गई उत्थे लोकां च खड़ी,
बजियां सी तालियां ते रोला पै गया,
मैं तां मुड़ आई दिल उत्थे रह गया....

केहड़ी गल्लो लोकां मारियां सी तालियां,
जी परदे तो बाहर सरकारां आ गईयां,
मैहकां दा खलारा चारों पासे पै गया,
मैं तां मुड़ आई दिल उत्थे रह गया....

अक्खां नूं खुमारी चढ़ी नींद नस गई,
सांवरी जी सूरत मेरे नैंना बस गई,
पूछदे ने लोकी श्याम की कह गया,
मैं तां मुड़ आई दिल उत्थे रह गया....
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