जब से आई शरण श्याम की मै,
मैंने मन की मति को छोड़ डाला,
खुद को कर डाला उसको ही अर्पण,
मैंने अपने खुदी को छोड़ डाला,
मुझको श्याम श्याम श्यामा
मुझको है श्याम की ही खुमारी,
उसको भी है मेरी जिमेवारी जिसने देखा है श्याम का घर
उसने अपनी गली को छोड़ डाला,
मेरे श्याम श्याम श्यामा
सब आते है मिले मिलाने,
हम भी आये है उनको मनाने,
इसी कारन से हमने हर जंगल हर बस्ती को छोड़ डाला,
मेरे श्याम श्याम श्यामा
कोई कमजोरी है न मज़बूरी अपनी मंजिल की,
न कोई दुरी बीच में ही रह जाये गा
वो जिसने भी तुझे छोड़ डाला,
जब से आई शरण श्याम की मै,