ज़माने में दिल की किसे हम सुनाते,
अगर तुम न आते,
हमे श्याम तुम न यहाँ आज पाते,
अकेला सफर में चला जा रहा था,
ज़माना भी हम पर सितम ढ़ा रहा था,
यही ठोकरे हम ज़माने में खाते,
अगर तुम ना आते....
कोई आस ना थी नहीं था भरोसा,
हमे तोड़ने का किसी ने भी मौका,
नहीं छोड़ा कब तक ये सांसे बचाती,
अगर तुम ना आते....
सहारा कभी भी दिया न किसे ने,
मेरा साथ छोड़ा नहीं बेबसी ने,
कहा तक गमो का ये भोज उठाते
अगर तुम ना आते....
कर्म है तुम्हारा एहसान है ये,
जो शर्मा के तन में अब प्राण है ये,
कभी के प्राण निकल श्याम जाते,
अगर तुम ना आते....