था बिन म्हारी आँख्या हो गयी बावली,
इ टाबर के मन में बस गयी सूरत थारी सांवली
इ टाबर के मन में..........
मनडो म्हारो सुनो डोले डगमैग डोला खावे हे
आंखड़ल्या विरह की मारी,आंसुड़ा टपकावे हे
कइया चलसी था बिन म्हारी गाड़ली
इ टाबर के मन में..........
मीरा पर किरपा किनी थी सुनबा आवे बातड़ली
दास थारो यो आश लगाया,खड्यो उडीके बाटड़ली
प्रेम जाम से भर दो म्हारी बाटली,
इ टाबर के मन में..........
पेल्या प्रीत लगाय के तू क्यू छोड़े मझदार जी
प्रेम भाव को पाठ पढ़ाकर,मत बिसरो दिलदारजी
मन में रम गयी सूरत थारी सांवली
इ टाबर के मन में..........
थे छोडो पण में ना छोड़ू, में तो थारो दास जी
खाटू का घनश्याम मुरारी,में तो थारो खास जी
आलूसिंह की था बिन आँख्या बावली
इ टाबर के मन में..........