दर दर भटक भटक कर मेरी उमर बीत गई सारी,
बरसाने में चाकर रख ले अब तो ओ बरसाने वाली....
रात और दिन करूँ चाकरी ना मांगू री वेतन,
श्री चरणों में अर्पण कर दूँ मैं तो अपना तन मन,
छोड़ दिया है कुटुंब कबीला छोड़ी दुनियादारी,
बरसाने में चाकर रख ले अब तो ओ बरसाने वाली.....
ब्रज की धुल में प्राण बेस नैनो में राधा रानी,
मैं तो दरस का अभिलाषी मत दीजो रोटी पानी,
एक मुट्ठी ब्रज रज खाकर मैं भूख मिटाऊं सारी,
बरसाने में चाकर रख ले अब तो ओ बरसाने वाली.....
गली गली तेरे गुण गाऊं बन के मस्त फकीरा,
जैसे श्याम की प्रीत में जोगन बन गई रानी मीरा,
राजू के मन चढ़ गई श्री राधे नाम खुमारी,
ओम के मन चढ़ गई श्री राधे नाम खुमारी,
बरसाने में चाकर रख ले अब तो ओ बरसाने वाली.....