देखु सखि, द्वै सावन सँग भाय

देखु सखि, द्वै सावन सँग भाय।
सावन महँ जनु तनु धरि सावन, रस बरसावन आय।
इत सावन घनश्याम उतै जनु, तनु घनश्याम जनाय।
इत सावन दामिनि दमकनि उत, पीत - वसन फहराय।
इत सावन नभ इंद्र धनुष उत, मणिगण मुकुट लखाय।
इत सावन बरसावत जल उत, आनँद - जल बरसाया।
इत सावन तृण हरित अवनि उत, काछनि हरित सुहाय।
इत सावन दादुर धुनि उत पग, नूपुर शब्द सुनाय।
दोउ 'कृपालु' मनभावन सावन, हिलि मिलि भल छवि छाय॥

भावार्थ -अरी सखि ! देख, दो सावन एक साथ सुशोभित हो रहे हैं।ऐसा प्रतीत होता है कि एक सावन के महीने में दूसरा सावन मूर्तिमान बनकर आनन्द रस बरसाने आया है।(एक सावन से अभिप्राय सावन मास से है एवं दूसरे सावन से अभिप्राय श्यामसुन्दर से है) इधर सावन मास में काले बादल हैं और उधर काले बादलों के समान श्यामसुन्दर का शरीर है ।इधर सावन मास में बिजली चमक रही है उधर श्यामसुन्दर का पीताम्बर फहरा रहा है।इधर सावन मास में आकाश में इन्द्र धनुष चमक रहा है उधर श्यामसुन्दर के मुकुट में रंग बिरंगी मणियाँ चमक रही हैं।इधर सावन मास में पार्थिव जल बरस रहा है उधर श्यामसुन्दर के द्वारा दिव्यानन्द जल बरस रहा है।इधर सावन मास में पृथ्वी पर हरी घास सुशोभित है उधर श्यामसुन्दर की कमर में हरी काछनी सुशोभित है।इधर सावन मास में मेंढकों की ध्वनि हो रही है उधर श्यामसुन्दर के चरणों ने शोभित नूपुर की मधुर ध्वनि है ।इस प्रकार चेतन एवं अचेतन दोनों सावन मिलकर अनिर्वचनीय शोभा पा रहे हैं।


पुस्तक: प्रेम रस मदिरा,लीला - माधुरी
पृष्ठ संख्या-249
पद संख्या-12

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