मैं तो थक गई रे भोले घोट के भांग तुम्हारी.....
हरी हरी पाती तोड़ के लाऊं,
घोट घोट तेरी भांग बनाऊ,
ऊगलिया घिस गई रे भोले घोट के भांग तुम्हारी,
मैं तो थक गई रे भोले घोट के भांग तुम्हारी.....
जंगल झाड़ घूम लिए सारे,
सिलबट्टा भी घिस गए हमारे,
टोकर भर लई रे भोले घोट के भांग तुम्हारी,
मैं तो थक गई रे भोले घोट के भांग तुम्हारी.....
पीके भांग पढ़ा रहवे तू,
मेरी सुध बुध भूल गया तू,
फीकर में रोय रही रे भोले घोट के भांग तुम्हारी,
मैं तो थक गई रे भोले घोट के भांग तुम्हारी.....
बिच्छू लिपट रहे तेरे तन पै,
काले नाग लटक रहे गले में,
मैं तो डर गई रे भोले देखके नाग तुम्हारे,
मैं तो थक गई रे भोले घोट के भांग तुम्हारी.....