परमपूज्य श्री बालकृष्ण दास जी महाराज 'प्रातः कालीन आरती'

जय अलि व्रज रस सिन्धु विहारिणि ।
जन जन के त्रय ताप निवारिणि ।।

श्यामचन्द्र की नित्य चकोरी,
महाभाव की अद्भुत लहरी ।
वेणु कुञ्ज की जीवन मूरी,
करुणा की झर झर निरझरनि ।।१।। जय अलि ।।

रूप गर्विता मन अभिरामिनि,
प्रेम नेम की गूढ़ उपासिनि ।
रस भीनि अलि नित्य नवीनि,
निज जन मानस कुमुद विकासिनि ||२|| जय अलि ।।

नित नव केलि विलास विनोदिनि,
नव निकुञ्ज रस मत्त मरालिनि ।
नव घन नील अचल सौदामिनि,
प्रिय 'शशि' वदन सुहास प्रसारिणि ।। ३ ।। जय अलि ।।
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