आज सेवक तेरा ये रण में चला,
प्रेयसी दो अंतिम बार विदा,
यह सेवक ऋणी तुम्हारा है,
तुम भी जानो, मैं भी जानूं,
यह अंतिम मिलन हमारा है,
मैं मातृ चरण से दूर चला,
इसका दारुण संताप मुझे,
पर यदि कर्तव्य विमुख होवुंगा,
जीने से लगेगा पाप मुझे,
अब हार जीत का प्रश्न नहीं,
जो भी होगा अच्छा होगा,
मरकर ही सही, पितु के आगे,
बेटे का प्यार सच्चा होगा,
भावुकता से कर्तव्य बड़ा,
कर्तव्य निभे बलिदानों से,
दीपक जलने की रीत नहीं,
छोड़े डरकर तूफानों से,
यह निश्चय कर बढ़ चला वीर,
कोई उसको रोक नहीं पाया,
चुपचाप देखता रहा पिता,
माता का अंतर भर आया,
चुपचाप देखता रहा पिता,
माता का अंतर भर आया॥