माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है,
तेरी औकात क्या, तेरी औकात क्या,
तेरी क्या शान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है......
चार दिन की है ये जिंदगानी तेरी,
रहने वाली नहीं नौजवानी तेरी,
खाक हो जाएगी हर निशानी तेरी,
खत्म हो जाएगी ये कहानी तेरी,
चार दिन का तेरा मान सम्मान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है.....
राज हस्ती का अब तक ना समझा कोई,
है पराया यहाँ पर ना अपना कोई,
हश्र तक जीने वाला ना देखा कोई,
मोत से आजतक बच ना पाया कोई,
कुछ समझता नही कैसा इंसान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है.....
ये जो दुनिया नजर आ रही है हसी,
चाट जाये ना इमां को तेरे कही,
गोद में तुझको लेलेगी एक दिन जमीं,
तुझको ये बात मालूम है के नही,
अपने ही घर में तू एक मेहमान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है......
अपनी करनी की नादाँ सजा पायेगा,
वक्त है और ना पास वर्ना पछतायेगा,
मौत के वक्त कुछ भी ना काम आएगा,
ये खजाना यही तेरा रह जायेगा,
माल दौलत का बेकार अरमान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है......
महकदे खाक है खाक हो जायेगा,
तू अँधेरे में एक रोज खो जायेगा,
अपनी हस्ती को गम में डुबो जायेगा,
कब्र की गोद में जाके सो जायेगा,
तू मगर सारी बातो से अनजान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है......
ग़म के मझधार में एक किनारा बने,
या जबीने वफ़ा का सितारा बने,
सबका अच्छा बने सबका प्यारा बने,
आदमी आदमी का सहारा बने,
बस यही आदमियत की पहचान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है......
चार दिन की कहानी है ये जिंदगी,
मौत की नौकरानी है ये जिंदगी,
मय्यते जिंदगानी है ये जिंदगी,
देख नादान फानी है ये जिंदगी,
जिंदगी के लिए क्यों परेशान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है.......
कोई चंगेज खा और ना हिटलर रहा,
कोई मुफ़लिस ना कोई तवंगर रहा,
कोई बतदर रहा और ना बेहतर रहा,
कोई दारा ना कोई सिकंदर रहा,
जीते जी सब तेरी आन है शान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है.....
ये कुटुंब ये कबीले ना काम आयँगे,
ये तेरे बेटा बेटी ना काम आएंगे,
जो भी है तेरे अपने ना काम आएंगे,
ये महल और दुमहले ना काम आएंगे,
मोह माया में तेरी फसी जान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है......
इस जमी को कुचलके जो चलता है तू,
इस तरह से उछलके जो चलता है तू,
यार मेरे मचलके जो चलता है तू,
यूँ ततबूर में ढलके जो चलता है तू,
मौत को भूल बैठा है नादान है,
माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है......
झूठी अजमत पे इतना अकड़ता है क्यों,
माल ओ दौलत पे इतना अकड़ता है क्यों,
अच्छी हालत पे इतना अकड़ता है क्यों,
अपनी ताकत पे इतना अकड़ता है क्यों,
बुलबुले से भी नाजुक तेरी जान है,
माटी के पूतले तुझे कितना गुमान है......
तेरा सब कुछ है बस जिंदगी के लिए,
ये जो है जिंदगी की अदा छोड़ दे,
क्यों ना केसर बुरा तुझको दुनिया कहे,
एक पल की खबर भी नही है तुझे,
सौ बरस का मगर घर में सामान है,
माटी के पूतले तुझे कितना गुमान है......