न मैं धाम धरती न धन चाहता हु

न धाम धरती न धन चाहता हु ,
किरपा का तेरी एक कण चाहता हु,

जपे नाम तेरा सदा एसा दिल हो,
सुने कीर्ति तेरी वोह शरवन चाहता हु,
विमल घ्यान धरा से मक्सित उबरे,
वोह श्रधा से भरपुर मन चाहता हु,
न धाम धरती न धन चाहता हु .......

नही चाहना है स्वर्ग सुख की,
मैं केवल तुमे प्राण धन चाहता हु,
उजाला हिरदय में अलोकिक हो तेरा,
परम जोती परतेक शण चाहता हु,
न धाम धरती न धन चाहता हु

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