धुन :- स्वयं बनाये ( राग में )
हरि मोह पै नज़रे कर्म करो ,
सब जग छोड़ शरण में आयो ,सर पर हाथ धरो।।
यह जग बैरी पड़ो है ,बहु विधि नाच करो।
सर पर काम ,काम में वासना ,हिरदे कपट भरो।
विषय बेलि फलयो फल लागा ,मन चाखत न टरो।
चलत फिरत सुमिरन करे मनवा ,बैठ भजन न करो।
छूट गई सब आरती पूजा ,जप-माला न फिरो।
‘‘मधुप’’ कुञ्ज मैं कागा बोलत ,चित न हंस धरो।
गुरुदेव भव-भंजन स्वामी ,किस विध पार करो।
हरि मोह पै नज़रे कर्म करो...... ।