इह धरती गुरूआं पीरां दी, ऋषियां- मुनीयां फकीरां दी।
गुरूबाणी पढ़दा सुनदा सै, क्यों मंदे कमी पै गयो वे- चट्ट......
ला टीके जान गंवाई जानै, क्यों मौत नूं गले लगाई जानै।
क्यों वसदे घर उजाड़ रहयो, तूं किसदी बैंहणी बैंह गयो वे- चट्ट.....
इह जीवन रब्बी अमानत वे, करी जावें क्यों तूं खियानत वे,
क्यों देश समाज कानूंन तों, बेखौफ तूं हुदा जा रहयो वे- चट्ट.....
मां बाप दी वे जिंदजान है तू, घर- बार पिंड दी शान है तूं.
क्यों चढ़दी जवानी ते आरा, पतझड़ दा तूं चला रहयों वे-चट्ट.....
जा धरतीपुतर किसान तूं बन, जा फौजी वीर जवान तू बन,
खा दुध दहीं मखन घियो वीरा, क्यों मिठा मौहरा खा रहयो वे-चट्ट.....
असीं सब तेरे हमदर्दी वे, तैनू मुड़ मुड़ कर दे अर्जी वे
जा नशा छोड़ाउ केन्द्र विच, क्यों घरे लुक के बैह गयो वे-चट्ट.....
औधे बिल्कुल मुफत इलाज होवे, औथे जिंदगी मुड़ आबाद होवे,
तूं नशा मुक्त हो जावेंगा, गल ‘‘मधुप’’ पते दी कह रिहा वे- चट्ट....।