तर्ज़ :- मेरे ढोल दी चिठी कोई आई (पंजाबी )
आये अवध जगतपति प्यारे, राम रघुवंश मणि।
यज्ञ सरिंगी दा ,बहार लैके आ गया।
फलया कल्पतरु,मंगल छा गया॥
पूरे होए इकरार अज सारे - राम रघुवंश०
शेष संग शेषपति, लै अवतार आये।
जोतिषी बन शम्भु,करन दीदार आए॥
मिले इष्ट नूँ इष्ट प्यारे - राम रघुवंश०
कमल जहे नैन,मथा चंन वांगू हसदा।
शाम सिलोना राम,नूर ब्रह्माण्ड दा॥
मन मोहने बाल घुँघरारे - राम रघुवंश०
पापी पारखंडी सब डोले घबराये ने।
मुके दुःख धरती दे, देव हरषाये ने॥
चन सूरज चमकन तारे - राम रघुवंश०
करके दीदार अज ,बिगड़ी संवार लौ।
तपदे अशांत मन ,कर ठण्डे ठार लौ॥
मुखों बोल ‘‘मधुप’’ जय जयकारे - राम रघुवंश०।