कौशल के भूपाती कुटिया मे सोये। देखे लखन जी तो जी भर के रोये। लिखा जो मुकद्दर मे मिटाना है मुश्किल, लिखा जो नहीं है तो पाना भी मुश्किल कोई खो के पाए, कोई पा के खोये। यहाँ ब्राम्भ को भी सहना पड़ा दुख, फिर जीव को क्या कब दुख है कब सुख