जग सागर से नैया मेरी पार लगाये।
बिन सतगुर के दूजा कोई नज़र न आये।
जग सागर से.......।
हर चौराहे हर इक मोड़ पे अटक रहा था
माया नगरी की गलियों में भटक रहा था
भटक रहे इस राही को सही राह दिखाये।
जग सागर से......।
बिन भक्ति के जीवन की हर बात अधूरी
सेवा और सुमिरण से जुड़ना क्यों है ज़रूरी
आवागमन और मुक्ति के मुझे भेद बताये।
जग सागर से.......।
दया धर्म को भूल चला था रब्ब का बंदा
सच्चा सौदा छोड़ करे क्यूँ झूठ का धंधा
काम के दीवाने को सतगुरू राम रटाये।
जग सागर से......,।
'शान्त' जो पूरा करना है मुक्ति का सपना
भक्ति भाव के रंग में रंग ले जीवन अपना
एक श्वास भी नाम बिना,बिरथा न जाये।
जग सागर से.......।