मां सबको सद्बुद्धि दो,बड़े शांति सदभाव।
मिटे शीघ्र संसार से, घृणा द्वेष का भाव।।
आजा मैं तो भटक गया राह में,मुझको दिखादे तेरा द्वार।
मुझको दिखादे तेरा द्वार.
(1) बन न सका मैं पत्थर भी तेरी राह का मैया।
मुझको सहारा है बस एक तेरी बांह का मैया।।
दरस दिखादे एक बार मां,
आजा मैं तो भटक गया राह में ...
(2)चूर हुआ मैं गर्व नशे में तेरा नाम मैं भुला।
जिसके लिए यह जन्म हुआ वही काम मैं भुला।
मिले ना जनम ये हर बार मां,
आजा मैं तो भटक गया राह में...
(3)कांटो पे तूने फूल बिछाकर पथ को साफ किया।
जानबूझकर कितनी की गलती फिर भी माफ किया।
तुझको नमन है सौ बार मां,
आजा मैं तो भटक गया राह में,मुझको दिखादे तेरा द्वार।
मां मां ....मां
डॉ सजन सोलंकी