बाला कई थारे जचगी

बाला या कांई थार जचगी,
पुंछ को फटकारो माऱयो,
लंका जलगी।।


श्रीराम को ले संदेशो हनुमत लंका जाव,
सो योजन समुन्दर न पल भर म नापयाव,
सुरसा मारग माही मिलगी,
पुंछ को फटकारो माऱयो,
लंका जलगी।।


सुरसा न हरायो बालो लंका माही आयो,
रावण का राक्षसडा सु पल माही टकरायो,
फौदा रावणा की भिडगी,
पुंछ को फटकारो माऱयो,
लंका जलगी।।


जा बगिया म सीता मां न देदी राम निशानी,
अक्षय मार गिरायो जद वो घबरायो अभिमानी,
मति रावण थारी फरगी,
पुंछ को फटकारो माऱयो,
लंका जलगी।।


तेल और रुई मंगवाकर पुंछ म आग लगायो,
एक एक कर बाला सारी लंका न जलाया,
नैया भक्ता की तिरगी,
पुंछ को फटकारो माऱयो,
लंका जलगी।।


बाला या कांई थार जचगी,
पुंछ को फटकारो माऱयो,
लंका जलगी।।
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