सीयाराम कण कण है समाया ।
जिधर देखा नज़र वही आया ॥
सागर जल में वही, गगन थल में वही ।
सेनादल में वही, भक्ति बल में वही ॥
रोम रोम राम नाम रस छाया,
- जिधर देखा०
छोटे बड़े भले, बुरे इन्सान में ।
जीवन के हर, छोटे बड़े अभियान में ॥
रज़ा उसकी में सब होता आया,
-जिधर देखा०
माला के मनकों में, सीया सिन्दूर में ।
छाती फोड़ दिखाया, सीयाराम उर में ॥
लवकुश में सीयाराम को पाया,
- जिधर देखा०
सीयाराम के काज, दिए संवार सभी ।
मां के दूध के कर्ज़, दिए उतार सभी ॥
अजर अमर ‘मधुप’ वर पाया ,
- जिधर देखा०