भाव-श्री भोली गोपी का
अब मैं वृन्दावन में बसूँगी
सन्तंन के संग बैठ बैठ मन,राधे रंग रगूँगी
अब मैं....
1.राधे नाम का रस पी पिकर,लोक की लाज
तजूँगी
अब मैं वृन्दावन में बसूँगी,सन्तंन के संग
बैठ बैठ मन,राधे रंग रगूँगी
अब मैं....
2.राधे की छविं हृदय बसाकर,हर पल नाम
रटूँगी
अब मैं वृन्दावन में बसूँगी,सन्तंन के संग
बैठ बैठ मन,राधे रंग रगूँगी
अब मैं....
3.भोली गोपी की अभिलाषा,महल टहलनी
बनूँगी
अब मैं वृन्दावन में बसूँगी,सन्तंन के संग
बैठ बैठ मन,राधे रंग रगूँगी
अब मैं....
बाबा धसका पागल पानीपत