लहर उठे, लो, अमर तिरंगा,यही हमारी शान।
इनकी रक्षा खातिर अनगिन ,वीर हुए कुर्बान।
सीने पर गोली खाकर ही,हुए सभी आजाद।
बही रक्त की छल छल नदियां, तभी हुए आबाद।
खुशियां सबके घर घर महकी,महका हिन्दोस्तान।
लहर उठे लो अमर तिरंगा,यही हमारी शान।
घोर यातना के सागर से,पार हुए हम आज।
भागे जब रण छोड़ फिरंगी,आया अपना राज।
आजादी की चिड़िया देखो, छेड़े नव नव तान।
लहर उठे लो अमर तिरंगा ,यही हमारी शान।
भगतसिंह,अशफ़ाक की धरती,निशदिन करे पुकार।
जाति धर्म के बंद करो रे,यह कलुषित व्यापार।
भारत मां के प्यारे सब हैं,उनकी सब सन्तान।
लहर उठे लो अमर तिरंगा,यही हमारी शान
कलकल करती गंग जहाँ पर ,देते निर्मल नीर।
जहाँ कृषकगण श्रम से अपने,खुद सीचें तकदीर।
हरे भरे ऊँचे तरुवर की,है अपनी पहचान।
लहर उठे लो अमर तिरंगा,यही हमारी शान।
होत प्रात मन्दिर में बजते, भगवत के मधुगान।
मस्जिद से भी छनकर आते, मधुरिम पुण्य अजान।
सभी धर्म बतलाते हमको,सब हैं एक समान
लहर उठे लो अमर तिरंगा, यही हमारी शान।
महापर्व गणतंत्र हमारा,भरे सदा मुस्कान।
देश देश नित शीश झुकाए,करे सदा गुणगान।
युग युग महके अमर रहे ये, भारत वर्ष महान।
लहर उठे लो अमर तिरंगा,यही हमारी शान।
इनकी रक्षा खातिर अनगिन ,वीर हुए कुर्बान।
रवण कुमार सोनी
टिकरी,अर्जुन्दा
छत्तीसगढ़