बलिहार युगल सरकार, हमरिहुँ ओर निहार।
तुम मात पिता भरतार, हम सेवक सदा तिहार।
तुम पतितन को रखवार, हम पतितन को सरदार।
तुम दीनबंधु सरकार, हम अहंकार अवतार।
तुम करुणा को भण्डार, हम याचक याचत प्यार।
तुम ही मम नातेदार, हौं अब न चहौं संसार।
तुम देत पदारथ चार, हम चहत प्रेम उपहार।
तुम कृपा करहु इक बार, हम दउँ तोहिं प्राणहुँ वार।
तुम साँचो मीत हमार, बरबस अपना लो यार।
तुम नित कर पर उपकार, हम मानत नहिं आभार।
तुम मम 'कृपालु' आधार, हम जानत नाहिं गमार।।
पुस्तक : ब्रजरस माधुरी-1
कीर्तन संख्या : 100
पृष्ठ संख्या : 186
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