देवर यु बन गये शत्रु घन लखन भरत तीनो भाई

सीता जी के भाग जगे श्री राम ने माला पहनाई,
देवर यु बन गये शत्रु घन लखन भरत तीनो भाई,

सास मिली कौशलया जैसी माँ जैसा प्यार दियां,
ससुर मिले दशरत जी ऐसे पिता के सब अधिकार दियां,
राजा जनक की देहडी छोड़ी रघुवर रानी कहलाई,
देवर यु बन गये शत्रु घन लखन भरत तीनो भाई,

केकाई और सुमित्रा जी के पाँव छुए आशीष लिया,
जनक दुलारी ने ऋषि मुनि गुरुओ को बी समान दियां,
सजा अयोध्या धाम निराला,
घर घर में खुशियां छाई,
देवर यु बन गये शत्रु घन लखन भरत तीनो भाई,

गंगा कलश द्वार पे छिड़के होये दुल्हन की आरती ,
सीता राम का विवाह देख कर धन्य हुए सब भारती,
मंगल भवन अमंगल हारी गीत सुनाये शहनाई,
देवर यु बन गये शत्रु घन लखन भरत तीनो भाई,
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