मोहिं लीनो मोल बिनु दाम री, कामरी-वारे ने।

मोहिं लीनो मोल बिनु दाम री, कामरी-वारे ने।
          दधि-बेचन इक दिन जात रही,
          नटखट ने अटपट बात कही।
'टुक सुन तो सों कछु काम री,' कामरी-वारे ने।
         हौं बोलीं 'काम बता अपनो'
         बोल्यो निशि देख्यों इक सपनो।
तू मेरी मैं तेरो ब्रज बाम री', कामरी-वारे ने।
          बोली 'नटखट लंपट चलु हट',
          'तू भी कछु कम नहिं कह लंपट।
' दे गारी पियहिं लै नाम री,' कामरी - वारे ने।
          हौं बोली सुन ले कान खोल,
          तू सब हीं ऐसेहिं कहत डोल।
तेरी बात न दाम छदाम री', कामरी-वारे ने।
          बोल्यो 'तू तो है गइ मोरी,
          मोहिं मान न निज इच्छा तोरी'।
सुनि वारी 'कृपालु' हौं भाम री, कामरी-वारे ने ।


भावार्थ - एक सखी कहती है - अरी सखि! कामरी ओढ़ने वाले ने मुझे बिना मूल्य के ही मोल ले लिया है। एक दिन दही बेचने जा रही थी। मार्ग में उस नटखट ने एक अटपटी बात कही। उसने पुकार कर कहा - अरी सखि! जरा सुन ले, तुझसे कुछ काम है। मैंने कहा क्या काम है? उसने कहा, 'रात में हमने एक सपना देखा है कि तू मेरी हो गई, मैं तेरा हो गया। 'मैंने कहा, 'अरे निर्लज्ज चल दूर हट।' उसने कहा- तू भी निर्लज्ज है जो मुझ प्रियतम को नाम लेकर गाली दे रही है। मैंने कहा कान खोलकर सुन ले, तू सबसे ऐसा ही कहता फिरता है, तेरी बात का मूल्य एक छदाम भी नहीं है। उसने कहा- 'तू तो मेरी हो चुकी, तू मुझे अपना मान या न मान, यह तेरी इच्छा'। 'कृपालु' कहते हैं यह सुनते ही सखी श्यामसुन्दर पर न्यौछावर हो गई।


पुस्तक : प्रेम रस मदिरा (प्रकीर्ण माधुरी)
पद संख्या : 17
पृष्ठ संख्या : 480
सर्वाधिकार सुरक्षित © जगद्गुरु कृपालु परिषत्

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