( तर्ज - पालकी में होके सवार चली रे )
कावड़ लेने में इस बार चला रे
मैं भी कावड़ियों के साथ चला रे
वो बैठा है पहाड़ों में वो बैठा है गंगा किनारे रे
भोले की कावड़ जो भी उठाए
वो जिंदगी में कष्ट ना पाए
करके पूरा विश्वास चला रे
मैं भी कावड़ियों के साथ चला रे....
पहुंचेंगे जब हम गंगा किनारे
मिलेंगे हमको भोले हमारे
भर के ये कावड़ में आज चला रे
मैं भी कावड़ियों के साथ चला रे....
गंगा जल से उनको नहलाउ
चंदन लगा के आरती गाउ
मन में मेरे नया चाव लगा रे
मैं भी कावड़ियों के साथ चला रे....
लकी ओ प्यारे कावड़ उठा ले
दिल तू अपना शिव से लगाले
गा - गा कर मैं तो तान चला रे
मैं भी कावड़ियों के साथ चला रे....