तर्ज - अकेले ही अकेले चला है कहाँ
सूना घर आंगन है सूना जहाँ
बता दो तुम बता दो गए हो कहाँ
आजा आजा तू धीर बंधाने
सारा परिवार रोता यहाँ
नाती बेटा तुम्हारे तडपते रहे
जख्म दर्दे जुदाई कैसे सहे
सोचते है कि अब अपना किसको कहे
कौन दिखलाऐगा रास्ता
कभी दुख का ना एहसास होने दिया
मुस्कुराते हुए फर्ज पूरा किया
गृहस्थ जीवन को भी ऐसे ढंग से जिया
लिख गए एक नई दास्ता
आज तरसी निगाहें बुलाए तुम्हें
दौरे रंजो अलम सब दिखाअ तुम्हें
गमे हालाते वाखिफ कराए तुम्हें
रूपगिर दे रहा वास्ता
सूना घर आंगन है सूना जहाँ
बता दो तुम बता दो गए हो कहाँ
आजा आजा तू धीर बंधाने
सारा परिवार रोता यहाँ
लेखक एवं गायक रूपगिरी वेदाचार्य जी
7792077586