देख लिया श्याम मुझे तिरछी नजर

देख लिया श्याम मुझे तिरछी नजर ।
तिरछी नजर सखी तिरछी नजर ॥

देखा जो उसको मैं बावरी हो गयी ।
जमुना में बहके भटकी मेरी खो गयी ॥
इतना नहीं सखी भूली डगर ।
देख लिया श्याम मुझे तिरछी नजर ॥

नजरें मिलाकर में क्या कर गयी रे ।
माखन की मटकी मैं खुद दे गयी रे ॥
है तीर सी उसकी तिरछी नजर ।
देख लिया श्याम मुझे तिरछी नजर ॥

दौड़ी पकड़‌ने को देखा एक बारी ।
पत्थर की मूरत बनी वो बेचारी ॥
कान्त कन्हैया की अद्‌भुत नजर ।
देख लिया श्याम मुझे तिरछी नजर ॥

रचना-स्वर एवं संगीत : श्री श्रीकान्त दास जी महाराज ।

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