वृन्दावन-धाम पुनीत परम, इसकी महिमा का क्या कहना,
श्रीश्यामा-श्याम जहाँ बसते, उस पुण्य-धरा का क्या कहना,
वृन्दावन-धाम पुनीत परम, इसकी महिमा का क्या कहना,
श्रीश्यामा-श्याम जहाँ बसते, उस पुण्य-धरा का क्या कहना,
वृन्दावन-धाम पुनीत परम,
श्रीकृष्ण जहाँ यमुना-तट पर, वृषभानु-सुता संग केलि करें
अभिसिक्त प्रेम-रस श्यामा के, श्रीकृष्ण-धाम का क्या कहना,
वृन्दावन-धाम पुनीत परम, इसकी महिमा का क्या कहना,
श्रीश्यामा-श्याम जहाँ बसते, उस पुण्य-धरा का क्या कहना,
वृन्दावन-धाम पुनीत परम,
आवाज जहाँ मथने की दही, नित निद्रा प्रातः दूर करे,
होते दर्शन श्री-अंगों के, गोपीजन श्याम का क्या कहना,
वृन्दावन-धाम पुनीत परम, इसकी महिमा का क्या कहना,
श्रीश्यामा-श्याम जहाँ बसते, उस पुण्य-धरा का क्या कहना,
वृन्दावन-धाम पुनीत परम,
वृषभानु-नन्दनी श्रीराधा, श्रीश्याम को मैं नित नमन करूँ,
हे युगल-स्वरूप शरण तेरी, तूँ जान तुझे जो भी करना,
वृन्दावन-धाम पुनीत परम, इसकी महिमा का क्या कहना,
श्रीश्यामा-श्याम जहाँ बसते, उस पुण्य-धरा का क्या कहना,
वृन्दावन-धाम पुनीत परम,
रचना- अशोक कुमार खरे