जय कृष्ण माधव नन्द-नन्दन,
मैं करूँ तेरी वन्दना ।
जय-जय मुरारी-कृष्ण-केशव,
कर रहा तेरी अर्चना॥
योग जप-तप कछु न जानूँ ,
क्या करूँ तेरी साधना ?
हे कृपानिधि ! दीन रक्षक !
सब हरो मेरी वासना ॥
मम हृदय में भक्ति भर दो,
बस यही है कामना ।
जग के माया मोह हरलो,
और कोई चाह ना ॥
जग के सब दुख दर्द देना,
पर प्रभु दो कामना ।
हो दयानिधि भक्त वत्सल,
तो तू पार उतारना ॥
तव पद कमल मकरन्द का,
मैं भ्रमर बनना चाहता ।
लो शरण में इस कान्त को,
यह दीन होकर याचता ॥
दोहा :
मुझ दीन हीन अनाथ पे,
कृपा करो हे ईश ।
भक्ति-भाव हिय में भरो,
दया करो जगदीश ॥1 ॥
शरणागत यह कान्त है,
कर जोरे है नाथ ।
सत्यमार्ग पे वह चले,
छूटे ना तव साथ ॥2 ॥
भजन रचना : प• पू• श्री श्रीकान्त दास जी महाराज ।
स्वर एवं संगीत : प्रवीण सिंह जी ।