मेरो चित्त चोर लियो गिरिधारी रे बनवारी रे

मेरो चित्त चोर लियो,
गिरिधारी रे बनवारी रे ।

अव्चक ही कुंजन में भेंटे,
मदन मोहन गिरिवर धारी ।
सघन श्याम मूरत अति सुन्दर,
पद सरोज नख मणि धारी ॥

नाभि ललित कटी किंकिन राजित,
पीत वसन तन छवि नयारी ।
बैजयंती उर माल विराजत,
कर पंकज मुरली सुखकारी ॥

राजीव नयन चन्द्र मुख शोभा,
कीर नासिका देख दुखारी ।
कृत मुकुट मणि कुंडल राजित,
तिलक देख मोहन मनोहारी ॥

सो तन हेरी, हेरी गहि मुरली,
टेरत हसत देत कर तारी ।
लक्ष्मी पति नहीं सुध रही तन की,
मानो पढ़ी कुछ जादू दारी ॥
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