देना है तो देदे जा लुतादे हम घर को जाए,
मंदिर के बाहर लिखवा दे दीन दुखी याहा ना आये,
जब देना ही नही था तुमको हमको यहाँ भुलाया क्यों,
इतनी दूर से आने का खरचा भी लगवाया क्यों,
मंदिर के बहार लाइन में घंटो खड़ा क्यों करवाए,
मंदिर के बाहर लिखवा दे .........
रुखा सुखा खाने वाला छप्पन भोग लगये क्या,
जिसकी छत का नही ठिकाना छतर तेरे चदाये क्या,
जो ढंग से चल ना पाए भेट तेरे क्या लाये,
मंदिर के बाहर लिखवा दे .........
कैसा तू दातार बना है कैसी ये दात्री है,
तेरे दर से लौट रहे है खली हाथ भिखारी है,
सेठो का तू सेठ कहलाये मुझको समज ये ना आये,
मंदिर के बाहर लिखवा दे .....
भोला है तुझे खबर नही जो मेरे दिल को भाता है,
मेरा बारी बारी उससे मिलने को दिल चाह्ता है,
तेरे या अंधेर नही है कहे को तू गबराए,
छपर पाड के दूंगा तुह्ज्को देर भले हो जाये,
मुझको जब अपना माना काहे को तू गबराए,