मोहें काहे हो ठुकराये कान्हा,
बिनु तोरे दर्श चैन न पाऊँ,
ये कैसी प्रीत लगाये कान्हा,
मोहें काहे हो ठुकराये कान्हा.......
बिनु सुन मुरली तान तुम्हारी,
मोसे रहा न जाये कान्हा,
मोहें काहे हो ठुकराये कान्हा.....
तोरी मद भरी अंखियाँ विह्वल कर दे,
ये दास कहाँ अब जाये कान्हा,
मोहें काहे हो ठुकराये कान्हा........
भवसागर में भटक रहा हूँ,
क्यूँ नहीं पास बुलाये कान्हा,
मोहें काहे हो ठुकराये कान्हा
आभार: ज्योति नारायण पाठक