दुःखी दुनियाँ में सुरनायक, मुझे अब कुछ नहीं भाता ॥
कहाँ जाऊ करूँ क्या मैं, समझ कुछ भी नहीं आता,
दुःखी दुनियाँ में सुरनायक.....
जिन्हें समझा सदा अपना, हुए साबित पराये ही ॥
हुए साबित पराये ही,
दया-सागर दया करिये, दया-सागर दया करिये,
हृदय धीरज नहीं आता,
कहाँ जाऊँ करूँ क्या मैं, समझ कुछ-भी नहीं आता,
दुःखी दुनियाँ में सुरनायक.......
कपट मन में छुपा मानव, दिखाते प्रेम ऊपर से ॥
दिखाते प्रेम ऊपर से,
सताते एक दूजे को, सताते एक-दूजे को,
ये है कैसा अजब नाता,
कहाँ जाऊँ करूँ क्या मैं, समझ कुछ-भी नहीं आता,
दुःखी दुनियाँ में सुरनायक...........
करो अब नष्ट भारत से, हे गौरिसुत अमङ्गल को ॥
हे गौरिसुत अमङ्गल को,
सुखी माँ भारती होगी, सुखी माँ भारती होगी,
हे सिद्धि-बुद्धि के दाता,
कहाँ जाऊँ करूँ क्या मैं, समझ कुछ-भी नहीं आता,
दुःखी दुनियाँ में सुरनायक............
(गीत रचना-अशोक कुमार खरे)