क्यों चुप बैठे हो लगता है कुछ है माजरा,
कुछ तुम बोलो कुछ हम बोले ओ संवारा,
है तेरे नाम की मस्ती में दिल बावरा ओ संवारा,
क्यों चुप बैठे हो लगता है कुछ है माजरा,
दो चार कदम पे तुम हो दो चार कदम पे हम है,
बस इतनी सी दुरी है फिर ख़तम हुए सब हम है,
हर पल दिल में रहते हो ओ संवारा,
क्यों चुप बैठे हो लगता है कुछ है माजरा,
कैसी ये प्रीत वडाई कब से है रीत चलाई
जैसे ही मुरली बजाते राधा डोरही आई,
तुम आज भी वोही जादूगर हो ओ संवारा,
क्यों चुप बैठे हो लगता है कुछ है माजरा,
ऐसा है एक एक प्रेमी हर पल वो तुझपे मिटा है,
आकाश में सुना पण था तेरी प्यार की छाई खता है,
अब संवारा बस संवारा ओ संवारा,
क्यों चुप बैठे हो लगता है कुछ है माजरा,