दरबार तेरे आया

दरबार तेरे आया फूलो का हार लेकर,
बिगड़ी मेरी बनादे अपना तू प्यार देकर,

सुनते है तेरी रेहमत दिन रात है बरसती,
मुझको गले लगाना आँचल की शाव देकर,
दरबार तेरे आया फूलो का हार लेकर,

भटका बहुत हु मैया जीवन की इस भवर में,
दुनिया से जब मैं हारा आया तेरी शरण में,
तू हाथ थाम लेगी संकट को मेरे हर के,
बिगड़ी मेरी बना दे......

हर याद लेके अपनी हर खोई तेरी धुन में,
आये है ढेर सारे मैं भी हु उनमे,
लौटू यहाँ से मैया खुशियों से झोली भर के,
बिगड़ी मेरी बना दे......
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