म्हारो रामजी का चरणा मे मन लाग्यो
मन लाग्यो , म्हारो तन लाग्यो
म्हारो रामजी का चरणा मे। ........
ना भावे मने लाडू - पेड़ा , ना कोई माल मिठाई
म्हारो तुलसी - चरणामर्त में मन लाग्यो
म्हारो रामजी का चरणा मे। ........
ना भावे मने सोना - चाँदी , हीरा - मोती
म्हारो तुलसी की माला में मन लाग्यो
म्हारो रामजी का चरणा मे। ........
ना भावे मने महल - मालियाँ , सौद रजाई
म्हारो रामजी का मंदिर में लाग्यो
म्हारो रामजी का चरणा मे। ........
ना भावे मने भाई - बंधू , ना कोई सागा- सनेही
म्हारो साधु साधु - संता में ही मन लाग्यो
म्हारो रामजी का चरणा मे। ........
ना भावे मने तोता - मैना , न कोई और जिनावर
म्हारो गोमाता का चरना में मन लाग्यो
म्हारो रामजी का चरणा मे। ........
ना भवे मने बाग - बगीचा , ना कोई सैर सपाटा
म्हारो मथुरा - बृंदावन में मन लाग्यो
म्हारो रामजी का चरणा मे। ........
रचना : शंकर शरण जी महाराज
स्वर : शंकर शरण जी महाराज
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