नाम हरी का जप ले बन्दे,
फिर पीछे पछतायेगा ।
तू कहता है मेरी काया,
काया का घुमान क्या ।
चाँद सा सुन्दर यह तन तेरे,
मिटटी में मिल जाएगा ॥
फिर पीछे पछतायेगा
बाला पन में खेला खाया,
आया जवानी मस्त रहा ।
बूडा पन में रोग सताए,
खाट पड़ा पछतायेगा ॥
वहां से क्या तू लाया बन्दे,
यहाँ से क्या ले जाएगा ।
मुठ्ठी बाँध के आया जग में,
हाथ पसारे जाएगा ॥
जपना है सो जपले बन्दे,
आखिर तो मिट जाएगा ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
करनी का फल पायेगा ॥
बोल हरी बोल हरी हरी हरी बोल,
मुकुंद माधव गोविन्द बोल ।
बोल हरी बोल हरी हरी हरी बोल,
केशव माधव गोविन्द बोल ॥