नीले आकाश पे रहने वाले, अपनी छाया में हमको छिपा ले,
हम खिलोनों के बस में ही क्या है, जैसे मर्जी है तेरी नाचाले।
सुख पे झपटा है दुःख का अँधेरा, आज बदीओं ने नेकी को घर,
फूल कांटो ने घायल किए हैं, बुझ गए आस के सब दीए हैं।
सुनले जग के मसीहा निराले, अपने बन्दों को गम से छुडा ले,
हम खिलोनों के बस में ही क्या है, जैसे मर्जी है तेरी नाचाले॥
दम फरिश्तों का अब घुट रहा है, बेकसूरों का ही घर लुट रहा है,
डर के छुरिओं पे चलना पड़ा है, हम को बेमौत मरना पड़ा है।
दस्ते जुल्फों के हैं नाग काले, आजा अब तो जरा रहम खाले,
हम खिलोनों के बस में ही क्या है, जैसे मर्जी है तेरी नाचाले॥