अब साई छतर की छाया में ,
थक हार के आ बैठे है,
अब धुप की अगनि कुछ भी नहीं एक पेड़ तले जा बैठे है,
जिस दिन से दिया हर पल अपना सत्संगत में सत्सेवा में,
इस भाव के बदले साई से हम कितना कुछ पा बैठे है,
अब साई छतर की छाया में ..
एह काश जरा दम भर के लिए सब इन चरनन में आ जाते,
वो लोग जो अपने जीवन के दुःख दर्द से गबरा बैठे है,
अब साई छतर की छाया में ..
अब हाथ पकड़ कर पार कर खुद साई अपने हाथो से,
हम उनकी बदौलत कश्ती को साहिल तक तो ला बैठे है,
अब साई छतर की छाया में .....
जब शांत हुई है मन भटी फिर क्यों उठे इस महफ़िल से,
साई की नायक पर रख कर हम पूरा भरोसा बैठे है,
अब साई छतर की छाया में थ