किस धुन में बैठा बावरे और तू किस मद में मस्ताना है,
ओ सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है,
ओ सोने वाले जाग.....
क्या लेकर आया था जग में फिर क्या लेकर जायेगा,
मुठ्ठी बांधे आया जग में फिर हाँथ पसारे जाना है,
ओ सोने वाले........
कोई आज गया कोई कल गया कोई चँद रोज में जायेगा,
जिस घर से निकल गया पंछी उस घर में फिर नही आना है,
ओ सोने वाले जाग......
सुत मात पिता बांधव नारी धन धाम यहीं रह जायेगा,
यह चंद रोज की यारी है फिर अपना कौन बेगाना है,
ओ सोने वाले जाग जा.....
कह भिक्षु यती हरि नाम जपो फिर ऐसा समय न आयेगा,
पाकर कंचन सी काया को फिर हांथ मीज पछताना है,
ओ सोने वाले जाग........
। माधव शरण ।।