वो फूल ना अब तक चुन पाया जो फूल चढ़ाने है तुझपर,
मैं तेरा द्वार न ढूंढ सका साई भटक रहा हु डगर डगर,
वो फूल ना अब तक चुन पाया....
मुझमे ही दोष रहा होगा मन तुझको अर्पण कर न सका,
तू मुझको देख रहा कब से मैं तेरा दर्शन कर न सका,
हर दिन हर पल चलता रहता संग्राम कही मन के बिहतर,
मैं तेरा द्वार न ढूंढ सका ......
क्या दुःख क्या सुख सब भूल मेरी मैं उलझा हु इन बातो में,
दिल खोया चांदी सोने में सोया मैं वेसुध रातो में,
तब ध्यान किया मैंने तेरा टकराया पग से जब पत्थर,
मैं तेरा द्वार न ढूंढ सका ......
मैं धुप छाओ के बीच कही माटी के तन को लिए फिरा,
उस जगह मुझे थामा तूने मैं भूले से जिस जगह गिरा,
अब तुहि पग दिखला मुझको सदियों से हु घर से बेघर,
मैं तेरा द्वार न ढूंढ सका ......