बेफिकर मैं रहता हूं

बेफिकर मैं रहता हूं जब से सब मेरी फ़िक्र वो रखता है,
मैं नींद चैन की सोता हु मेरी खातिर वो जगता है,

मंजूर नहीं वो दोनों जहान जिस में मेरा श्याम नहीं वस्ता,
नित नित डुबकी लगा मन रे यहाँ प्रेम का दरिया बेहता है,
बेफिकर मैं रहता हूं.......

वो मनमोहन घनश्याम किशन छलियाँ उसके है नाम कही,
गागर में कई सागर उसके,
दिल खोल लुटाया करता है,

पाने के लिया इशाईया बहुत खोने के लिया तो कुछ भी नहीं,
इस मन को तराजू तोलो हरी,
लेहरी ये भटकता रहता है,
बेफिकर मैं रहता हूं
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