रातो को उठ उठ कर जो ध्यान लगाते है,
मस्ती में वो रंग जाए शिरडी में जो जाते है,
साई नाम में जो डूबा उसे खबर नहीं जग की,
सजदे में जो दर आके बस सिर को झुकाते है,
मस्ती में वो रंग जाए शिरडी में जो जाते है,
बेदर्द ज़माने का उसे डर क्या सताये गा,
शरधा से जो घर आके इसे अपना बनाते है,
मस्ती में वो रंग जाए शिरडी में जो जाते है,
इस चौखठ से कोई मायूस नहीं लोटा,
चरणों की धूलि को जो मस्तक से लगाते है,
मस्ती में वो रंग जाए शिरडी में जो जाते है,
जन्नत से भी बढ़ कर के ये धाम निराला है,
केवल वो तरे भव से जो मुँह विसराते है,
मस्ती में वो रंग जाए शिरडी में जो जाते है,