सालासर में बाबा का जो दरबार न होता,
हम भक्तो का फिर बेडा कभी भी पार न होता,
सालासर में भक्तो की आशाये कौन पुगाता मेहंदीपुर में कष्टों का फिर साया कौन भगाता,
दुःख ही दुःख होता सुख का कोई आधार न होता,
हम भक्तो का फिर बेडा कभी भी पार न होता,
मितली ना कोई मंजिल सब रहते बीच डगर में तूफानों में कोई नइया फस्ती है जैसे भवर में,
वो नइयाँ दुबे जिसका खेवन हार न होता,
हम भक्तो का फिर बेडा कभी भी पार न होता,
सब करते रहते निंदा आपस में इक दूजे की और कोई कभी न कहता के भाई जय बाबा की,
सोनी आपस में किसी का कभी प्यार न होता,
हम भक्तो का फिर बेडा कभी भी पार न होता,