(किष्किंधा कांड:प्रथम भाग)
सौम्य वर्ण रूप मनोरम
बलिष्ठ आपका शरीर
कौन हैं आप आए कहां से
क्यों फिरते हो वन वन वीर
किस प्रयोजन से आए हो
लगते कुछ अकुलाए हो
शरचाप हस्ती किए धारण
कहो कहो आने का कारण
भाव मुद्रा भंगिमाएं नृप सी
ताना बाना जैसे फकीर
कौन हैं आप आए कहां से
क्यों फिरते हो वन वन वीर
अवधपुरी के हम हैं वासी
मैं ज्येष्ठ राम हूं ये अनुज लखन
महाराजा दशरथ के पुत्र हम हैं
उनकी आज्ञा से हुआ वन आगमन
संग हमारे थी प्रिय जानकी
जिनको हर ले गया रावण
राजा सुग्रीव से माता शबरी ने
मिलना हमें सुझाया है
वहां मिलेगी हमें सहायता
ऐसा हमें बताया है
आन पहुंचे क्या हम किष्किंधा नगरी
जहां के सुग्रीव जी नरेश हैं
कृपा उनसे भेंट करा दो हमारी
कार्य अति विशेष है
जाकर कहनी है उनसे
हमको अपनी पीर
कौन हैं आप आए कहां से
क्यों फिरते हो वन वन वीर
दोनो की स्थिति है एक जैसी
समस्त हाल पल में जान लिया
दोनों निर्वासित,पत्नी वियोग में
हैं दुखी सब मान लिया
चलिए सुकमारों संग में मेरे
सुग्रीव जी से भेंट कराता हूं
आओ आओ हे अवध भूपति
आपको सब से मिलवाता हूं
पहुंचे किष्किंधा पर्वत पर
जानी कुशलक्षेम परस्पर
बजरंगी ने परिचय सबका करवाया
महाराजा सुग्रीव को राम लक्ष्मण के
आने का प्रयोजन बतलाया
सुनी व्यथा जो राम की सबने
सबकी आंखों से बहे नीर
सुनकर व्यथा कथा राम जी भी
अधीर भये,भये अति गम्भीर
कौन हैं आप आए कहां से
क्यों फिरते हो वन वन वीर
पुत्री समान होती है अनुज भार्या
बाली तुमने उसका हरण किया
इसलिए तुम्हारा वध किया मैनें
चूंकि तुमने पाप का वरण किया
अरे मूढ़ पापी है वो जो
स्त्री सम्मान नहीं करता है
बोझ समक्ष है वो अधर्मी
ऐसे ही वो निसहाय सा मरता है
धन्य धन्य हे राम, हो सदा जय आपकी
क्षण में दूर कर दी आपने
घड़ियां मेरे संताप की
कहिए अपना प्रयोजन
कोई योजना हो तो बतलाएं
कैसे ढूंढे देवी सीता को
क्योंकर उनका पता लगाएं
सहस्रों योजन दूर है लंका
कौन जाएगा हो रही है शंका
मध्ये राह दूर तक फैला है क्षीर
कौन हैं आप आए कहां से
क्यों फिरते हो वन वन वीर
©राजीव त्यागी