जाकी गति है हनुमान की ।
ताके मन मह बसत हैं,
श्री राम लखन अरु जानकी ॥
- हनुमत कृपा तुम्हारी होवे,
फिकर नहीं यमबान की ।
- मेरे उर के बंधन काटे,
रक्षा की निजमान की ।
- भवसागर में उलझी तूने,
हर मुश्किल आसान की ।
- सच्चा मय हो जीवन सारा,
दो शक्ति गुणगान की ।
- मेरे भीतर रमे राम की,
तुनें ही पहचान की ।
- मैं तेरी बहना तू मेरा दादा ,
लाज रखो इस आन की ।
स्वर÷ परम पूज्या संत करुणामयी गुरु माँ