बहुत देर से दर पे बैठे हैं मोहन
प्रभु आते आते बहुत देर करदी
ऐ दाता मेरे हम गरीबों पे तुमने
तरस खाते खाते बहुत देर करदी
भला कौन है तुमसा दुनियां में कोई
भक्तो की अपने खबर लेने वाला
दया दृष्टि अपने बालक पे फिर क्यूँ
उठाते उठाते बहुत दे करदी
तुम्हारे शरण में चला आया जो भी
मुकद्दर उसी का संवारा है तुमने
मगर श्याम क्यों मेरे बिगड़ी हुयी को
बनाते बनाते बहुत देर करदी
दया के समुन्दर हो तुम खाटू वाले
तो राजू को भक्ति का अमृत पिला दो
दया सिंधु क्युँ आज प्रेम की मुरलिया
बजाते बजाते बहुत देर करदी