द्वारिका नाथ इतने दयालु दीं दुखियो को दिल से लगाते,
भगतो के दुःख को पल में मिटाने धरती पर जनम लेकर आते,
द्रोपदी जब यहा की बिलख ती,
उसकी लजा भी जब दांव पर लगती,
सच्चे मन से पुकारे लगाती वसतर देके है उसे बचाते,
द्वारिका नाथ इतने दयालु दीं दुखियो को दिल से लगाते,
दुर्योध्न ने प्रभु को भुलाया मेवा मिष्ठान,
स्वागत में लाया पर अभिमान से दूर भगवान सज के विधुर घर आते,
द्वारिका नाथ इतने दयालु दीं दुखियो को दिल से लगाते,
मोह में अँधा था जैसे अर्जुन रूप उसको विराट दिखाते,
जो भगवान के है भरोसे हारता नहीं वो प्रभु जिताते,
द्वारिका नाथ इतने दयालु दीं दुखियो को दिल से लगाते,