मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे
जैसे उड़ी जहाज को पंछी,पुनि जहाज पे आवे
मेरो मन अनत कहाँ..अनत कहाँ सुख पावे

कमल नयन कौ छाड़ि महातम
और देव को ध्यावे
परम गंग को छाड़ि पिया सौ
दुर्मति कूप खनावे
मेरो मन अनत कहाँ..अनत कहाँ सुख पावे

जिहि मधुकर अम्बुज रस चाख्यो
क्यूं करील फल भावे
सूरदास प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै
मेरो मन अनत कहाँ..अनत कहाँ सुख पावे
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