जयति जयति जय माँ तमसा,
कोई नही पावन तुमसा,
लखन सिया संग वन जब आये प्रथम निशा जहां राम बिताये,
वाल्मीकि दुर्वाषा डट कर किये तपस्या जिसके तट पर,
जयति जयति जय माँ तमसा,
तेरी लहरों में ही गुंजी सर्वप्रथम कविता की धारा,
वाल्मीकि के माध्यम जिसको माँ वाणी ने स्वंय संवारा,
जयति जयति जय माँ तमसा,
जग को पार लगाने वाले को भी तुमने पार लगाया,
जाने कितने अज्ञानी को माँ तुमने विद्वान बनाया ,
जयति जयति जय माँ तमसा कोई नही पावन तुमसा,